परिचय - ४ - रिटायरमेंट के बाद (1978-2003)

रिटायर होते ही स्वामी अखण्डानन्द जी सरस्वती के आदेश पर पुनः सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे और अन्त तक करते रहे । अन्तिम केस १८ अगस्त २००३ को किया.

पुस्तकें लिखना व संकलन कर प्रकाशित करना उनके जीवन का अभूतपूर्व अंग था । उनकी पुस्तकें विधि सम्बन्धी, धार्मिक एवं विद्यार्थियों के लिये थीं । तीनों विषयों पर उनके अनेक प्रकाशन हुए ।

१ अक्तूबर २००३ को ब्रह्ममुहूर्त में उन्होंने शरीर त्याग दिया और उनकी पुण्य आत्मा श्री रामजी के चरणों में लीन हो गयी .