परिचय - ५ - कर्मयोगी भक्त


अध्यात्म दर्शन और भक्ति साधना , जिसकी आधारशिला इनके माता - पिता - गुरुजी ने रखी थी, सतत्‌ विकसित होती गयी। अपने स्वाध्याय व अनुभव को स्वयं की साधना में चरितार्थ करना इनका ध्येय बन गया था ।

प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में ३ बजे से ही साधना आरम्भ करके निरन्तर अपने इष्टदेव श्रीराम की स्मृति रखना व उनका सामीप्य अनुभव करना इनका स्वभाव था । कर्तव्य कर्म को उनकी पूजा मान कर उन्हीं को समर्पित कर प्रसन्नचित्त रहते थे । श्री हनुमान जी की विशेष कृपा का अनुभव उन्हें समय समय पर होता रहा ।

"योगः कर्मसु कौशलम्‌" की विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाले श्री शिवदयाल जी बहुत विनम्रता से अपने जीवन की सफलता और उपलब्धियों को अपने आराध्य देव सीतारामजी की अहेतु की कृपा व माता - पिता - गुरु महाराज के शुभ आशीर्वाद का प्रसाद मानते थे । वास्तव में श्री शिव दयाल जी विद्या, विनय और विवेक से ओतप्रोत कर्मयोगी भक्त थे .