परिचय - १ - बचपन एवं शिक्षा (1916-1938)


श्री शिव दयाल परमेश्वर दयाल श्रीवास्तव का जन्म २८ फरवरी, १९१६ को ग्वालियर में हुआ ।

इनके पिता श्री परमेश्वरदयाल श्रीवास्तव ग्वालियर के वरिष्ठ अधिवक्ता तथा ग्वालियर रियासत के दीवाने मजलिस व दीवाने कानून के सदस्य थे।

जब यह तीन वर्ष के थे, इनकी माता श्रीमती गिरिजेश्वरी देवी ने श्री राम चरित मानस की चौपाइयां याद करा के इनमें आध्यात्म और भक्ति बीजारोपण किया । विद्यारम्भ तो बाद में हुआ ।

इनके पिताजी ने इन्हें धर्मनीतियाँ समय समय पर सिखाई और स्वयं कानूनी सूत्रो से इनकी विधि शिक्षा की आधार शिला रखी .

परिचय - २ - वकालत (1938-1958)

श्री शिवदयाल ने सन्‌ १९३८ में अपने पूज्य पिताजी के चरणों में बैठ कर वकालत आरम्भ की । सन्‌ १९३९ में इनके पिताजी ब्रह्मलीन हो गये । सन्‌ १९५८ में हाई कोर्ट जज नियुक्त होने तक इन्होंने वकालत की । इन वर्षों में वह :

  1. पार्ट टाइम प्रोफ़ेसर ऑफ लॉ १९४८ से १९५८ तक रहे ।
  2. डेप्युटि गवर्नमेंट एडवोकेट १९४९ से १९५८ तक रहे ।
  3. मध्य भारत विधान सभा के सदस्य १९४८ से १९४९ तक रहे ।
    संविधान बनने पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के कारण उन्होंने त्याग पत्र दिया । उन दो वर्षों में भी इन्होंने अपने राजनैतिक जीवन को केवल विधि और शिक्षा के क्षेत्र में सीमित रखा । स्वतन्त्र सदस्य रहते हुए सभी राजनैतिक दलों में लोकप्रिय रहे ।
  4. रोटरी क्लब ग्वालियर के सन्‌ १९४६ से सदस्य, फिर सचिव, फिर उपाध्यक्ष रहकर १९५३-१९५४ में अध्यक्ष रहे ।
  5. फ्रीमेसन लॉज ग्वालियर के राइट वर्शिपफुल मास्टर १९५२-१९५३ में रहे ।
  6. ग्वालियर म्युनिसपैलिटी के सदस्य और वाइस प्रेसीडेन्ट १९४२ से १९४६ तक रहे .

परिचय - ३ - जज (1958-1978)


अधिवक्ता वर्ग से श्री शिव दयाल मात्र ४२ वर्ष की अल्प आयु में सन्‌ १९५८ में मध्य प्रदेश हाइ कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश (जज) नियुक्त हुए । सन्‌ १९७५ में वरिष्ठता के आधार पर चीफ़ जस्तिस नियुक्त हुए और सन्‌ १९७८ में सेवानिवृत्त हुए। उन २० वर्षों में जस्टिस शिवदयाल ने हज़ारों निर्णय दिये । अनेक अवसरों पर अखिल भारतीय समाचार पत्रों व पत्रिकाओं ने उनकी निर्भयता पर साधुवाद दिया ।

चीफ़ जस्टिस शिवदयाल ने अपने राज्य के न्यायालयों में नयी गति और नये उत्साह से कार्य कराया । उनके कार्यकाल में न्यायपालिका के लिये तीन सूत्र थे :
  • न्याय वास्तविक हो ।
  • न्याय शीघ्र हो ।
  • न्याय सस्ता हो .

परिचय - ४ - रिटायरमेंट के बाद (1978-2003)

रिटायर होते ही स्वामी अखण्डानन्द जी सरस्वती के आदेश पर पुनः सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे और अन्त तक करते रहे । अन्तिम केस १८ अगस्त २००३ को किया.

पुस्तकें लिखना व संकलन कर प्रकाशित करना उनके जीवन का अभूतपूर्व अंग था । उनकी पुस्तकें विधि सम्बन्धी, धार्मिक एवं विद्यार्थियों के लिये थीं । तीनों विषयों पर उनके अनेक प्रकाशन हुए ।

१ अक्तूबर २००३ को ब्रह्ममुहूर्त में उन्होंने शरीर त्याग दिया और उनकी पुण्य आत्मा श्री रामजी के चरणों में लीन हो गयी .

परिचय - ५ - कर्मयोगी भक्त


अध्यात्म दर्शन और भक्ति साधना , जिसकी आधारशिला इनके माता - पिता - गुरुजी ने रखी थी, सतत्‌ विकसित होती गयी। अपने स्वाध्याय व अनुभव को स्वयं की साधना में चरितार्थ करना इनका ध्येय बन गया था ।

प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में ३ बजे से ही साधना आरम्भ करके निरन्तर अपने इष्टदेव श्रीराम की स्मृति रखना व उनका सामीप्य अनुभव करना इनका स्वभाव था । कर्तव्य कर्म को उनकी पूजा मान कर उन्हीं को समर्पित कर प्रसन्नचित्त रहते थे । श्री हनुमान जी की विशेष कृपा का अनुभव उन्हें समय समय पर होता रहा ।

"योगः कर्मसु कौशलम्‌" की विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाले श्री शिवदयाल जी बहुत विनम्रता से अपने जीवन की सफलता और उपलब्धियों को अपने आराध्य देव सीतारामजी की अहेतु की कृपा व माता - पिता - गुरु महाराज के शुभ आशीर्वाद का प्रसाद मानते थे । वास्तव में श्री शिव दयाल जी विद्या, विनय और विवेक से ओतप्रोत कर्मयोगी भक्त थे .

परिचय - ६ - युवा पीढी का विकास

विगत कुछ वर्षों से उनका ध्यान भारत की युवा पीढ़ी की ओर था । उनकी अभिलाषा थी कि उसे ऐसी शिक्षा व ऐसा वातावरण मिले जिसमें भारतीय संस्कृति का सर्वांग समावेश हो । इसकी योजना बनाकर उसमें अपना पर्याप्त समय देते रहे, जिसके लिये इन्हें अरविन्द आश्रम, दिल्ली से बहुत प्रोत्साहन और सहयोग मिला । उस उद्देश्य को लेकर उनकी पत्नी की पुण्यस्मृति में देवी सरोजिनी पुण्यार्थ कोष सोसाइटी का निर्माण हुआ है और कई क्रियात्मक योजनायें गतिशील हो गयी हैं ।

उनकी प्रेरणा से पिलानी, ग्वालियर, इन्दौर व भोपाल के अनेक विद्यालयों में चरित्र निर्माण तथा सर्वांगीण विकास की शिक्षा १५+ वर्षों से दी जा रही है ।

सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास पर तीन भागों में, क्रमशः ६ से ९ वर्ष, १० से १३ वर्ष व १४ से १७ वर्ष तक के विद्यार्थियों के लिये, सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित उनकी लिखी गयी पुस्तकें आज के समाज में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होंगी । हर विद्यालय को इन्हें अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना चाहिये ।

List of Law Books

सम्माननीय श्री जस्टिस शिवदयाल जी की कृतियाँ
विधि :-

  1. मध्यभारत रिपोर्टर - सह-सम्पादक ।
  2. पिताजी के साथ सह-सम्पादक - श्रीवास्तवाज लॉ डिक्शनरी (इंगलिश - हिन्दी) : 1939 
  3. इसी के आधार पर स्व-सम्पादित परमेश्‍वर दयाल लॉ डिक्शनरी: 1970 (गिरिजा प्रकाशन) और 
  4. उसका द्वितीय संस्करण : 1974 बी परमेश्‍वर दयाल लॉ एण्ड एडमिनिस्ट्रेटिव डिक्शनरी (इंगलिश - हिन्दी)
  5. खुलासा नज़ायर : संवत 1991 से 1995 तक 
  6. खुलासा नज़ायर : संवत 1996 से 2000 तक 
  7. ग्वालियर (इन पिक्चर्स) : रोटरी डिस्ट्रिक्ट कान्फ्रेंस के अवसर पर : फरवरी 1950 
  8. संविधान और विधियाँ : 1974 : (मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिए)
  9. मध्यप्रदेश भू विधि : 1978
  10. Basic Legal Principles & Terms 1970 & 1975
  11. Paper on 'Unpolluted and Speedy Justice' in "Delays and Corruption in Indian Judicial System - Remedial measures, and Matters Relating to Judicial Reform" : 1999
  12. Chapter on 'Citizenship Values and Quality' in "The Citizen & Judicial Reforms" : 2003


List of Spiritual and Educational Books

सम्माननीय श्री जस्टिस शिवदयाल जी की कृतियाँ
आध्यात्मिक एवं शिक्षा :-

  1. श्री कृष्ण के 23 उपदेश : 23 अप्रैल 1947 (प्रिय जगन्नाथ जी के शुभ-विवाह के अवसर पर) 
  2. उत्थान पथ : 27 नवम्बर, 1956 (बहन कृष्णा के शुभ-विवाह के अवसर पर) 
  3. पूजा पथ : 4 फरवरी 1961 (बेटी मीरा के शुभ-विवाह के अवसर पर)
  4. शरणागति पथः 11 मई, 1963 (बेटी उमा के शुभ-विवाह के अवसर पर)
  5. गीता प्रमोदः 21 जनवरी, 1965 (बेटी गीता के शुभ-विवाह के अवसर पर)
  6. ओम-मधुमय साधनाः 10 मार्च 1966 (चि. अरुण के शुभ-विवाह के अवसर पर) 
  7. भक्तिमणि : 1967 (प्रिय गौरी के जन्म के अवसर पर)
  8. अमृतवाणी व्याख्याः 1969 
  9. स्वामी सत्यानंद जी कृत अमृतवाणी की टीका : 1970 
  10. साधना पथ : 1970 (उत्थान पथ का संशोधित और परिवर्धित रूप, सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित)
  11. मानस अमृतः 1973 (श्री रामनवमी) 
  12. गीता का सरगम 18 जून 1974 (चि. अनिल के शुभ-विवाह के अवसर पर)
  13. बाल मानस : 1975 (श्री रामनवमी) 
  14. श्री सत्यनारायण : जून 1975 (चि. चैतन्य के जन्म के शुभ अवसर पर)
  15. गीता अमृतः 1976 (श्री गीता जयन्ती) 
  16. श्री राम परिवार की दैनिक प्रार्थना : 23 नवम्बर, 1976 (बेटी राधा के शुभ-विवाह के अवसर पर)
  17. भजन माला में साधना पथः २5 जुलाई, 1977 (चि. गौरव के जन्म के शुभ अवसर पर)
  18. भावांजलि - भाग 1
  19. भावांजलि - भाग 2 : 9 नवम्बर, 1977 
  20. श्री रामाय नमः : 5 अप्रैल, 1979, श्रीराम नवमी (चि. भरत के जन्म के शुभ अवसर पर) 
  21. अतिसय प्रिय मोरे : 2 अक्टूबर, 1981 (महात्मा गाँधी की शताब्दी वर्षगांठ) 
  22. प्रीति की रीति : 12 अपैल, 1981 (श्री रामनवमी) 
  23. Last Chapter “'वंदउँ सीता रामपद"' 1981 
  24. श्री रामदूतंशरणंप्रपद्ये : 2 अपैल, 1982 (श्री रामनवमी)
  25. अतीव मे प्रिया : 12 अगस्त, 1982 (श्री कृष्ण जन्माष्टमी) 
  26. Personality 23.12.84 
  27. Development of Personality 1984 
  28. साधना सार : 18 फरवरी 1985 (देवी सरोजिनी की वर्षगांठ पर) 
  29. प्रेम अमृत : 2 अक्टूबर, 1986 (विजयदशमी) 
  30. देवी सरोजिनी से क्या सीखा : 18 फरवरी, 1987 (देवी सरोजिनी की वर्षगांठ पर) 
  31. अखण्ड साधना : 18 फरवरी, 1988 (देवी सरोजिनी की वर्षगांठ पर)
  32. Integration of Personality & National Transformation 18.2.89
  33. Biography of an obscure saint - (co-author) 
  34. सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास, पुष्प 1 (सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित)
  35. सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास, पुष्प 2 (सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित)
  36. सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास, पुष्प 3 (सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित)
  37. साधना सूत्र 18.2.85 
  38. विकसित व्यक्तित्व 18.2.91
  39. श्रीराम परिवार परिचय 16.1.92 
  40. नारी शिक्षा के उद्देश्य और आवश्यकता 12.2.94
  41. हमारे तीन हृदय
  42. हमारे बुज़ुर्ग
  43. EDITOR "GREATNESS PERSONIFIED"
  44. Published 7 स्मारिकाs in memory of near and dear ones.


Judges' Diary : न्याय डायरी 1976

"Late Justice Shiv Dayal (Shrivastava) during his tenure as Chief Justice of the High Court of Madhya Pradesh brought out Judges’ Diary as an official publication of the High Court. It included Judge’s Prayer running into three stanzas.
Invoking the mercy of the Supreme Lord, he described the Judges as “Thy servants whom Thou sufferest to sit in earthly seats of judgement to administer Thy justice to Thy people”.
He begs from the infinite mercy of the Supreme Lord, so as “to direct and dispose my heart that I may this day fulfil all my duty in Thy fear and fall into no error of judgment.”
In the third stanza, he says ___ “Give me grace to hear patiently, to consider diligently, to understand rightly, and to decide justly! Grant me due sense or humility, that I may not be misled by my willfulness, vanity or egotism”.
Rightly, the Judges are something special in the democratic form of government governed by a Constitution and, therefore, the most exacting standards can be none too high."

The above excerpt is taken from the First M.C. Setalvad Memorial Lecture given on Tuesday, 22nd February, 2005 by Hon’ble Shri R.C. Lahoti, Chief Justice of India (page 16 of pdf) on the topic "ATTEMPTED CODIFICATION OF CANONS OF JUDICIAL ETHICS".

Rare Photo

I have one extremely rare photograph of Respected Tauji (Shri Justice Shiv Dayal Ji Shrivastava) and Pitaji (Shri Jagannath Prasad Shrivastava, Advocate), when Tauji had his first visit to Gwalior as Chief Justice of Madhya Pradesh High Court. That time respected Pitaji was President of Gwalior Bar Association.

Both are offering respect to each other by doing "Namastey". One lawyer said these are two brothers and on this respected Pitaji's reply was "No it is Bar Association President who is welcoming the Chief Justice. If it were two brothers, then the younger one would have been touching the feet of elder and the elder one would have been giving his blessings to the younger". Respected Tauji also said "yes, Jagannath ji is right".

Abhay

Blueprint for Daily Prayer - Morning



जय श्री राम

मानव जीवन का चरम लक्ष्य :- श्री राम की अखण्ड स्मृति (= नित्य एकत्व)

सब राम के मंगलमय विधान से होता है जो न्याय और दया पर आधारित है ।

मैं "कर्ता" नहीं हूँ ।


राम

प्रपन्नता

पवित्रता

प्रसन्नता

स्वास्थ्य (A)
प्राणायाम
आसन
व्यायाम
भोजन
विश्राम एवं मनोरंजन
स्वकर्म (B)
राम कृपा का अवलम्बन 
समय का आदर एवं सदुपयोग 
योग्यता बढ़ाने का सतत प्रयास

सन्तोष
राम ने जो दिया है, बहुत है । 
लाखों करोड़ों को इतना भी नहीं मिला है ।


(A) (B) करने के लिये, और सब समझ कर दृष्टिकोण बदलने के लिये हैं ।
प्रातः "साधना सूत्र" का पाठ

Blueprint for Daily Prayer - Evening



जय श्री राम

साधक का परम साध्य (लक्ष्य) :- श्री राम की अखण्ड स्मृति (= नित्य एकत्व)

अखण्ड स्मृति
राम अपनी कृपा से मुझे भक्ति दे .
राम अपनी कृपा से मुझे शक्ति दे ..
नाम जपता रहूँ, काम करता रहूँ .
तन से सेवा करूँ, मन से संयम कर्रूँ ..

राम

ध्यान (A)

आराध्य श्रीराम त्रिकुटी में, 
प्रियतम सीताराम हृदय में ..
श्री राम जय राम जय जय राम . 
राम राम राम राम रोम रोम में ..

जप (B)

श्री राम जय राम जय जय राम .
 राम राम राम राम राम मुख में ..
श्री राम जय राम जय जय राम .
 राम राम राम राम स्वांस स्वांस में ॥

समर्पण
(1) तन है तेरा, मन है तेरा
(2) प्राण हैं तेरे, जीवन तेरा
(3) सब हैं तेरे, सब है तेरा
श्री राम जय राम जय जय राम .
राम राम राम राम जन जन में ..
श्री राम जय राम जय जय राम .
राम राम राम राम कण कण में ..

शरणागति
(4) मैं हूं तेरा


प्रीति
(5) तू है मेरा

सायं "शरणागति पथ" का पाठ, "साधना पथ" का पाठ
(A) (B) करने के लिये, अन्य सब, समझ कर , दृष्टिकोण बदलने के लिये हैं ।

दैनिक प्रार्थना

॥ ॐ ॥

सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः॥

मेरे राम, मेरे नाथ!

आप् सर्वदयालु हो, सर्वसमर्थ हो, सर्वत्र हो, सर्वज्ञ हो। आपको कोटिश नमस्कार ।

आपने साधना के लिये मानव शरीर दिया है और प्रति क्षण दया करते रहते हैं। आपके अनन्त उपकारों का ऋण नहीं चुका सकता। पूजा से आपको रिझाने का प्रयास करना चाहता हूँ।

अपनी कृपा से मेरे विश्वास दृढ़ कीजिये कि 'राम मेरा सर्वस्व है'। 'मैं राम का हूँ'। 'सब मेरे राम का है'। 'सब मेरे राम के हैं'। 'सब राम के मंगलमय विधान से होता है और उसी में मेरा कल्याण निहित है'।

अपनी अखण्ड स्मृति दीजिये। राम नाम का जप करता रहूँ। रोम रोम में राम बसा है। हर स्थान पर हर समय राम को समीप देखूँ।

अपनी चरण शरण में अविचल श्रद्धा दीजिये। मेरे समस्त संकल्प राम इच्छा में विलीन हों। राम कृपा में अनन्य भरोसा रख कर सदैव सन्तुष्ट और निश्चिन्त रहूँ, शान्त रहूँ, मस्त रहूँ।

ऐसी बुद्धि और शक्ति दीजिये कि वर्तमान परिस्थिति का सदुपयोग करके, पूरा समय और पूरी योग्यता लगा कर अपना कर्तव्य लगन उत्साह् और प्रसन्न चित्त से करता रहूँ। मेरे द्वारा को ऐसा कर्म न होने पाये जिसमें मेरे विवेक का विरोध हो।

सत्य, निर्मलता, सरलता, प्रसन्नता, विनम्रता, मधुरता मेरा स्वभाव हो।

दुखी को देख कर सहज करुणित और सुखी को देख कर सहज प्रसन्न हो जाऊँ । मेरे जीवन में जो सुख का अंश है वह दूसरों के काम आये और जो दुख का अंश है वह मुझे त्याग सिखाये।

मेरी प्रार्थना है कि आपका अभय हस्त सदा मेरे मस्तक पर रहे। आपकी कृपा सदा सब पर बनी रहे। सब प्राणियों में सद्‌भावना बढ़ती रहे। विश्व का कल्याण हो।

ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः।